नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के मौके पर उनकी बेटी अनीता बोस फाफ ने केंद्र सरकार से अपील की है कि नेताजी के पार्थिव अवशेषों को जापान के टोक्यो स्थित रेंकोजी मंदिर से भारत लाया जाए। उन्होंने कहा कि दशकों तक भारतीय सरकारें इस मामले में झिझकती रहीं या इस पर कार्रवाई करने से इनकार करती रहीं।
रेंकोजी मंदिर में क्यों रखे हैं नेताजी के अवशेष?

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 1945 में एक हवाई दुर्घटना में मृत्यु होने का दावा किया गया था। उनके अवशेष जापान के टोक्यो में स्थित रेंकोजी मंदिर में रखे गए। नेताजी की पुत्री अनीता ने कहा कि जापानी सरकार और मंदिर के पुजारी वर्षों से नेताजी के अवशेषों को उनकी मातृभूमि लाने के लिए तैयार हैं।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का अंतिम संस्कार कहां हुआ?
जस्टिस मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, सुभाष चंद्र बोस की मौत 18 अगस्त 1945 को ताइवान के ताइपेई में एक विमान दुर्घटना में हुई थी। दुर्घटना में पायलट की तुरंत मृत्यु हो गई, जबकि नेताजी गंभीर रूप से झुलस गए। उन्हें पास के अस्पताल में ले जाया गया, जहां उन्होंने उसी रात आखिरी सांस ली। उनका अंतिम संस्कार ताइपेई में किया गया।
जापान के मंदिर में कैसे पहुंची नेताजी की अस्थियां

ताइवान में अंतिम संस्कार के बाद नेताजी की अस्थियां एक बक्से में रखकर टोक्यो भेज दी गईं। टोक्यो में इंडियन इंडिपेंडेंस लीग (IIL) के सदस्य एसए अयार और राम मूर्ति को नेताजी के अवशेष सौंपे गए। इसके बाद, 14 सितंबर 1945 को उन्हें टोक्यो के रेंकोजी मंदिर में रखा गया। तब से लेकर आज तक नेताजी की अस्थियां वहीं रखी हुई हैं।
सरकारें क्यों झिझकती रहीं?

2016 में सार्वजनिक हुए दस्तावेजों के अनुसार, पहले की सरकारों का मानना था कि नेताजी की मृत्यु 1945 में हुई थी। लेकिन इसे सार्वजनिक करने से बचा गया क्योंकि प्रतिक्रिया का डर था। अनीता बोस ने कहा कि यह स्वीकार करना आवश्यक है कि उनकी मृत्यु ताइपेई, ताइवान में विमान दुर्घटना के दौरान हुई।
अब क्यों जरूरी है अवशेषों की वापसी?
अनीता बोस फाफ ने कहा कि यह समय है कि नेताजी के अवशेषों को भारत लाया जाए और उनकी मातृभूमि में उचित सम्मान दिया जाए। दशकों से इस मुद्दे पर अनदेखी की गई है। नेताजी की विरासत को सम्मानित करने के लिए यह कदम उठाना बहुत जरूरी है।
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80 साल बाद भी अस्थियां भारत क्यों नहीं लाई गईं?
नेताजी की अस्थियों को भारत लाने के कई प्रयास हुए, लेकिन यह प्रक्रिया कभी पूरी नहीं हो सकी। इंदिरा गांधी के शासनकाल में जापानी शिपबिल्डिंग इंडस्ट्री एसोसिएशन ने अस्थियों को भारत लाने का खर्च उठाने की पेशकश की थी, लेकिन इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
रेंकोजी मंदिर के पुजारी ने 1945 में यह कसम खाई थी कि वे नेताजी की अस्थियों की देखभाल तब तक करेंगे, जब तक उन्हें भारत नहीं ले जाया जाएगा। तब से हर साल मंदिर में नेताजी की पुण्यतिथि पर स्मारक सेवा आयोजित की जाती है।

नेताजी को क्यों नहीं मिला भारत रत्न?
पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने नेताजी को मरणोपरांत भारत रत्न देने का निर्णय लिया था। लेकिन दबाव के चलते यह फैसला वापस लेना पड़ा। सरकार को डर था कि अगर ऐसा किया गया, तो नेताजी की मृत्यु की पुष्टि हो जाएगी, जिससे विवाद खड़ा हो सकता है।
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