पट्टाभिषेक में खूब रोईं ममता कुलकर्णी, बोलीं- परीक्षा पास करके महामंडलेश्वर बनी हूं, यही थी महादेव की इच्छा, अब यमाई ममता नंद गिरि के नाम से जाना जाएगा

बॉलीवुड की मशहूर अदाकारा ममता कुलकर्णी, जिन्होंने 90 के दशक में भारतीय सिनेमा पर राज किया, अब अध्यात्म की दुनिया में कदम रख चुकी हैं। प्रयागराज के महाकुंभ में संन्यास की दीक्षा लेने के बाद, वह किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर बनी हैं। यह उनके जीवन का बड़ा परिवर्तन है, जो न केवल उनकी आध्यात्मिक यात्रा को दर्शाता है, बल्कि समाज में ट्रांसजेंडर समुदाय को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल भी है।

संन्यास की दीक्षा और नया नाम
महाकुंभ के दौरान, ममता कुलकर्णी ने संन्यास की दीक्षा लेकर अपना नया नाम यमाई ममता नंद गिरि प्राप्त किया। दीक्षा समारोह में उन्होंने भगवा वस्त्र धारण किया और संगम में स्नान के साथ पिंडदान की रस्म पूरी की। पट्टाभिषेक की प्रक्रिया के दौरान, वह इतनी भावुक हो गईं कि उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े। वैदिक मंत्रों के उच्चारण और शंखनाद के बीच उनका पट्टाभिषेक संपन्न हुआ।

23 वर्षों की साधना का परिणाम
ममता कुलकर्णी ने बताया कि पिछले 23 वर्षों से वह ध्यान, तप और साधना में लीन थीं। इस दौरान उन्होंने अपने जीवन को आध्यात्मिक रूप से समर्पित कर दिया। उनका कहना है कि यह महादेव और महाकाली की इच्छा थी, जिसने उन्हें संन्यास का मार्ग चुनने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने इस आध्यात्मिक सफर को 23 साल की पढ़ाई के समान बताया, जिसका प्रमाण उनका महामंडलेश्वर बनना है।

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पट्टाभिषेक की प्रक्रिया
महामंडलेश्वर बनने के लिए ममता को कठोर परीक्षा से गुजरना पड़ा। किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी और अन्य संतों ने उनके साधना और ज्ञान की परीक्षा ली। इसके बाद उन्हें विधिवत महामंडलेश्वर की उपाधि प्रदान की गई। पट्टाभिषेक के दौरान शुद्धि अनुष्ठान किया गया, जिसमें ममता को मंत्रोच्चार के साथ शंख से गिरते दूध से स्नान कराया गया।

‘यह महादेव का आदेश था’
जब ममता से उनके इस बड़े फैसले के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि यह महादेव और महाकाली की महाशक्ति का आदेश था। उनके अनुसार, “मैंने कुछ नहीं किया, यह सब महादेव की इच्छा थी। उनके चुने हुए मार्ग पर चलना मेरा कर्तव्य था।”

किन्नर अखाड़े में महामंडलेश्वर की भूमिका
किन्नर अखाड़ा, जिसे 2015 में स्थापित किया गया था, ट्रांसजेंडर समुदाय को आध्यात्मिक और सामाजिक मान्यता देने का काम करता है। ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर के रूप में नियुक्त करके, अखाड़ा समाज में अपने संदेश को और अधिक प्रभावशाली बना रहा है। ममता के जुड़ने से यह संगठन और अधिक सशक्त हुआ है।

25 साल बाद भारत लौटने का अनुभव
ममता कुलकर्णी ने 25 साल बाद भारत लौटने पर अपनी भावनाएं साझा कीं। उन्होंने बताया कि जब उन्होंने फ्लाइट से भारत की भूमि को देखा, तो वह भावुक हो गईं और उनकी आंखों में आंसू आ गए। भारत आने के बाद, ममता ने महाकुंभ में भाग लिया और आध्यात्मिक जीवन को पूरी तरह अपनाने का निर्णय लिया।

सोशल मीडिया पर सक्रिय
ममता कुलकर्णी ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा को सोशल मीडिया पर भी साझा किया। उन्होंने महाकुंभ की तस्वीरें और वीडियो पोस्ट किए, जिसमें वह भगवा वस्त्रों में साध्वियों के साथ खड़ी नजर आईं। उन्होंने अपने प्रशंसकों से इस नए जीवन के लिए आशीर्वाद और समर्थन मांगा।

ममता कुलकर्णी का संदेश
ममता कुलकर्णी ने अपने जीवन के इस नए अध्याय को आध्यात्मिक रूप से सार्थक बताया। उनका मानना है कि हर व्यक्ति को अपने जीवन में अध्यात्म का अनुभव करना चाहिए। उनके अनुसार, “यह महादेव की कृपा है कि उन्होंने मुझे इस मार्ग पर चलने का अवसर दिया।”

निष्कर्ष
ममता कुलकर्णी का बॉलीवुड से अध्यात्म तक का सफर एक प्रेरणादायक कहानी है। उनके संन्यास लेने और किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर बनने का निर्णय समाज में आध्यात्मिकता और समावेशिता के प्रति एक नई सोच को बढ़ावा देता है। यह कदम न केवल उनकी व्यक्तिगत यात्रा का प्रतीक है, बल्कि ट्रांसजेंडर समुदाय के सशक्तिकरण की दिशा में भी एक बड़ा कदम है।

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