Mahakumbh 2025: दंडी संन्यासी को नहीं होता किसी को छूने तक का अधिकार, यही है इनके लिए सबसे बड़ा दंड, संन्यासी की समाधि और मोक्ष

दंडी संन्यासियों की पहचान: उनका दंड
दंडी संन्यासियों को सनातन हिंदू धर्म के सर्वोच्च संन्यासी माना जाता है। इनकी सबसे बड़ी पहचान उनका ‘दंड’ है, जिसे शास्त्रों में भगवान विष्णु और ब्रह्म की शक्ति का प्रतीक माना गया है। दंड उनके और परमात्मा के बीच की कड़ी है। दंडी संन्यासियों को न तो किसी को छूने का अधिकार होता है और न ही किसी को उन्हें छूने देने का।

दंडी संन्यासियों का अखाड़ा
महाकुंभ 2025 में दंडी संन्यासियों का अखाड़ा प्रयागराज के सेक्टर 19 में स्थापित किया गया है। यहां निरामिष भोजन, अध्यात्म, और नियमों का पालन करते हुए दंडी संन्यासी अपनी साधना और पूजा करते हैं। इनकी सबसे बड़ी पहचान उनका दंड ही होती है, जो उनके और परमात्मा के बीच की कड़ी है। उन्हें किसी को छूने का अधिकार नहीं होता और न ही खुद को छूने देने का। जितेंद्रानंद सरस्वती ने बताया कि शंकराचार्य बनने से पहले दंडी स्वामी की प्रक्रिया जरूरी है।

दंडी बनने की प्रक्रिया और महत्व
दंडी संन्यासी बनने के लिए एक साधु को 12 वर्षों तक ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है। यह प्रक्रिया बेहद कठिन और अनुशासनपूर्ण होती है। शंकराचार्य बनने के लिए दंडी स्वामी बनने की प्रक्रिया अनिवार्य है।
मौजूदा समय में भारत में करीब एक हजार दंडी स्वामी हैं, जो समाज और राष्ट्रहित के लिए समर्पित रहते हैं।

दंड का महत्व और पूजा
दंड को ‘ब्रह्म दंड’ कहा जाता है, जिसे संन्यासी प्रतिदिन पूजते हैं। दंड को निर्धारित आवरण में रखा जाता है और केवल पूजा के समय इसे खोला जाता है। माना जाता है कि इसमें ब्रह्मांड की दिव्य शक्ति समाहित होती है। इसे अपवित्र होने से बचाना जरूरी है, और अपात्र लोगों को इसे दिखाने की अनुमति नहीं होती।

संन्यासी की समाधि और मोक्ष
दंडी संन्यासी को निधन के बाद जलाया नहीं जाता। दीक्षा के दौरान ही उनका अंतिम संस्कार मान लिया जाता है। माना जाता है कि दीक्षा के समय ही उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। मृत्यु के बाद इनकी समाधि बनाई जाती है, जिससे यह संदेश दिया जाता है कि वे ब्रह्म में लीन हो चुके हैं।

अद्वैत सिद्धांत का पालन
दंडी संन्यासियों का जीवन अद्वैत सिद्धांत पर आधारित होता है। वे निर्गुण और निराकार ब्रह्म की उपासना करते हैं। उनका लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति और ब्रह्म से एकाकार होना होता है।

महाकुंभ 2025 में इन संन्यासियों के दर्शन और परंपराओं का अनुभव धर्म और आध्यात्मिकता के लिए एक अद्वितीय अवसर प्रदान करेगा।

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