दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025: कौन सुनेगा दिल्ली के दिल का हाल? यमुना, जनसंख्या, पानी, प्रदूषण… सारे मुद्दे चुनाव से गायब, बँट रही Free की ‘रेवड़ी’

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 की तारीख की घोषणा हो चुकी है। पांच फरवरी को दिल्ली के मतदाता नई सरकार के गठन हेतु मतदान करेंगे। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या दिल्ली की जनता इस चुनाव में अपने वास्तविक मुद्दों पर ध्यान दे पाएगी? राजधानी दिल्ली कई गंभीर समस्याओं से जूझ रही है, लेकिन चुनावी प्रचार में इनका कोई जिक्र नहीं हो रहा है।

दिल्ली के ज्वलंत मुद्दे
  1. प्रदूषण: दिल्ली की सांसें घुट रही हैं: दिल्ली लंबे समय से वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या से जूझ रही है। हर साल सर्दियों में वायु गुणवत्ता “गंभीर” श्रेणी में चली जाती है, जिससे जनता के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। लेकिन चुनावी माहौल में इस मुद्दे पर ठोस चर्चा नदारद है।
  2. जल संकट और यमुना नदी की सफाई: दिल्ली की एक बड़ी आबादी आज भी पीने के साफ पानी के लिए जूझ रही है। कई इलाकों में पानी की आपूर्ति टैंकरों के जरिए होती है। दूसरी ओर, यमुना नदी, जो दिल्ली की जीवन रेखा कही जाती थी, अब एक गंदे नाले में बदल चुकी है।
  3. बुनियादी ढांचे की दुर्दशा: दिल्ली का बुनियादी ढांचा बढ़ती आबादी के दबाव में चरमरा रहा है। सड़कें बदहाल हैं, ट्रैफिक की समस्या गंभीर है, और कई क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है। नई दिल्ली क्षेत्र को छोड़ दें तो बाकी दिल्ली की हालत काफी दयनीय है।
  4. जनसंख्या विस्फोट और अनियोजित विकास: दिल्ली की जनसंख्या करीब तीन करोड़ को पार कर चुकी है, जबकि इसे अधिकतम 90 लाख तक सीमित होना चाहिए था। बेतरतीब ढंग से बढ़ती जनसंख्या के कारण शहर पर भारी बोझ पड़ रहा है, लेकिन इस पर कोई ठोस योजना नहीं बनाई जा रही है।

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Delhi: यमुना में दूषित झाग

चुनावों में असली मुद्दों की अनदेखी
राजनीतिक दलों द्वारा असली मुद्दों की अनदेखी कोई नई बात नहीं है। इस बार भी जनता को लुभाने के लिए मुफ्त योजनाओं और लोकलुभावन घोषणाओं का सहारा लिया जा रहा है। महिलाओं को मासिक भत्ता देने से लेकर मुफ्त बिजली और पानी जैसी घोषणाएं तो की जा रही हैं, लेकिन दीर्घकालिक समाधान पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा।

जनकल्याण बनाम चुनावी ‘रेवड़ी’
राजनीतिक दलों ने लोकलुभावन योजनाओं को ‘जनकल्याण’ का नाम दे दिया है। लेकिन सच्चाई यह है कि ये योजनाएं दीर्घकालिक विकास में बाधक बन सकती हैं। सरकारों का ध्यान बुनियादी ढांचे के विकास, प्रदूषण नियंत्रण, जल प्रबंधन और रोज़गार सृजन जैसी योजनाओं पर होना चाहिए, लेकिन मुफ्त योजनाओं की राजनीति ने इन आवश्यक सुधारों को पीछे धकेल दिया है।

दिल्ली के मतदाताओं की जिम्मेदारी
इस बार चुनाव में दिल्ली के मतदाताओं को सोच-समझकर निर्णय लेना होगा। उन्हें उन दलों और नेताओं को चुनना होगा जो शहर के वास्तविक मुद्दों को हल करने की प्रतिबद्धता दिखाते हैं। केवल मुफ्त सुविधाओं के प्रलोभन में आकर वोट देना दीर्घकालिक रूप से हानिकारक हो सकता है।

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