महाकुंभ मेले में देशभर से आए 50 हजार भिखारी, जानवरों की चर्बी से तैयार किए जाते हैं घाव, रोजाना कमाते है1 से 2 हजार

प्रयागराज का महाकुंभ मेला दुनिया भर में अपनी धार्मिक महत्ता और विशालता के लिए प्रसिद्ध है। हर बार लाखों श्रद्धालु इस मेले में संगम पर स्नान, ध्यान और दान के लिए आते हैं। दान की परंपरा के चलते यहां हजारों भिखारी भी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। ये भिखारी विभिन्न तरीकों से श्रद्धालुओं से दान प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। इस लेख में महाकुंभ में भिक्षावृत्ति के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है।

नकली घाव और उनके पीछे की सच्चाई


महाकुंभ में संगम घाट पर अक्सर महिलाएं और पुरुष अपने शरीर पर नकली घाव दिखाकर भीख मांगते नजर आते हैं। दैनिक जीवन में इन भिखारियों की वास्तविकता चौंकाने वाली होती है। नकली घाव बनाने के लिए जानवरों की चर्बी और विशेष केमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है। इनसे तैयार घाव असली नजर आते हैं और मक्खियों से बचाने के लिए इन पर सुगंधित बाम या अन्य दवाएं लगाई जाती हैं। श्रद्धालु इन घावों को देखकर दयावश पैसे, अनाज या अन्य वस्त्र दान कर देते हैं।

भीख मांगने की तकनीक और प्राइम लोकेशन
महाकुंभ मेले में 25 सेक्टर फैले हैं, जिसमें 10 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र ‘प्राइम लोकेशन’ कहलाता है। संगम घाट, किला, अक्षय वट और हनुमान मंदिर जैसे स्थान भिक्षावृत्ति के लिए सबसे उपयुक्त माने जाते हैं। यहां श्रद्धालुओं की भीड़ दिन-रात बनी रहती है। भीख मांगने वाले अपनी जगह फिक्स कर लेते हैं, ताकि हर दिन वही श्रद्धालु उन्हें दान दे सकें।

संगम घाट पर विशेष रूप से महिलाएं और बच्चे अपने घाव या अन्य कठिनाईयों का प्रदर्शन करते हैं। कई बच्चे देवी-देवताओं की वेशभूषा में भीख मांगते हैं। शिव, कृष्ण और राधा के रूप में तैयार बच्चे श्रद्धालुओं का ध्यान आकर्षित करते हैं। श्रद्धालु धार्मिक भावनाओं के वशीभूत होकर उन्हें पैसे दे देते हैं।

भिखारियों का संगठित नेटवर्क


महाकुंभ मेले में भिखारियों का एक संगठित नेटवर्क सक्रिय है। अधिकांश भिखारी प्रयागराज और आसपास के जिलों जैसे प्रतापगढ़, मिर्जापुर, चित्रकूट और वाराणसी से आते हैं। इसके अलावा, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश से भी लोग भिक्षावृत्ति के लिए यहां आते हैं। मेले की शुरुआत में 7,000 भिखारी थे, लेकिन अब यह संख्या 50,000 तक पहुंच चुकी है।

विशेष रूप से, बड़े समूहों में महिलाएं, पुरुष और बच्चे संगम घाट और अन्य प्राइम लोकेशन पर भीख मांगते हैं। इनमें से कुछ एक्टिंग में माहिर होते हैं और सबसे अच्छी जगह कब्जा करते हैं। वहीं, नए भिखारियों को दूर-दराज के क्षेत्रों में बैठना पड़ता है।

पुलिस और प्रशासन की भूमिका
भिखारियों पर नियंत्रण के लिए प्रशासन ने 5 टीमों का गठन किया है। प्रत्येक टीम में 2 इंस्पेक्टर और 12 सिपाही शामिल हैं। ये टीम भिखारियों का सत्यापन और पूछताछ करती है। प्रशासन नियमित रूप से भिखारियों को हटाने के लिए प्रयासरत रहता है।

दान की परंपरा और सामाजिक प्रभाव
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. धनंजय चोपड़ा के अनुसार, महाकुंभ में स्नान, ध्यान और दान की परंपरा का विशेष महत्व है। यही परंपरा भिखारियों को यहां आने के लिए प्रेरित करती है। हालांकि, इनमें से कई लोग वास्तविक भिखारी नहीं होते, बल्कि भिखारी भेष में श्रद्धालुओं की भावनाओं का लाभ उठाते हैं।

महाकुंभ में भिक्षावृत्ति से जुड़े यह तथ्य समाज को सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या इस धार्मिक परंपरा का उद्देश्य सही मायनों में पूरा हो रहा है। नकली घाव और भिखारियों के संगठित नेटवर्क जैसी घटनाएं दान की भावना को कमजोर करती हैं। इसके बावजूद, महाकुंभ में श्रद्धालु अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप दान करना जारी रखते हैं।

महाकुंभ मेले में भिक्षावृत्ति का दृश्य समाज की वास्तविकताओं और धार्मिक परंपराओं के बीच के अंतर्द्वंद्व को उजागर करता है। नकली घाव और बच्चों का देवी-देवताओं के रूप में तैयार होना धार्मिक आस्थाओं का शोषण करने की ओर इशारा करता है। प्रशासन द्वारा भिखारियों पर काबू पाने के प्रयासों के बावजूद यह समस्या हर मेले में दिखाई देती है। अंततः, यह श्रद्धालुओं और समाज पर निर्भर करता है कि वे इस समस्या को कैसे देखते हैं और इससे निपटने के लिए क्या कदम उठाते हैं।

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